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सोचता हूँ कभी पन्नों पर उतार लूँ उन्हें I उनके मुँह से निकले सारे अल्फाजों को याद कर लूँ कभी I ऐसी क्या मज़बूरी होगी उनकी की हम याद नहीं आते I सोचता हूँ तोहफा भेज कर अपनी याद दिला दूँ कभी I सोचता हूँ कभी पन्नों पर उतार लूँ उन्हें I"दूरियां इतनी बढ़ जाएंगी मालूम ना था I वो बाबू से बेवफा बन जाएंगे मालूम ना था I हम उनके लिए पागल हो जाएंगे मालूम ना था I जो अपना चेहरा हमारी आँखों में देखते थे I वो आईना बदल लेंगे मालूम ना था I ऐसे बरसेगी उसकी यादें सन्नाटे में मालूम ना था I दूरियां इतनी बढ़ जाएंगी मालूम ना था I"हंसी में छिपे खामोशियों को महसूस किया है I मैखाने में बुजुर्गों को भी जवान होते देखा है I हमने इन्शानो को जरुरत के बाद अनजान होते देखा है I क्यों भूल जाते है इंसान अपनी अस्तित्व पैसा आते ही I दुनियां ने बड़े - बड़े राज महराजा को फ़क़ीर होते देखा है I"चलते चलते कहीं रुका, तो कुछ जानने वाले मिले तो लगा कितनी छोटी सी दुनियां है जब जानने वालों ने पहचाना नहीं तो लगा की इस छोटी सी दुनियां में हम कितने छोटे है I"खुद पर गुरुर था तुम्हें की तुम मुहब्बत के बारे में सब ज...