सोचता हूँ कभी पन्नों पर उतार लूँ उन्हें I
उनके मुँह से निकले सारे अल्फाजों को याद कर लूँ कभी I
ऐसी क्या मज़बूरी होगी उनकी की हम याद नहीं आते I
सोचता हूँ तोहफा भेज कर अपनी याद दिला दूँ कभी I
सोचता हूँ कभी पन्नों पर उतार लूँ उन्हें I"दूरियां इतनी बढ़ जाएंगी मालूम ना था I
वो बाबू से बेवफा बन जाएंगे मालूम ना था I
हम उनके लिए पागल हो जाएंगे मालूम ना था I
जो अपना चेहरा हमारी आँखों में देखते थे I
वो आईना बदल लेंगे मालूम ना था I
ऐसे बरसेगी उसकी यादें सन्नाटे में मालूम ना था I
दूरियां इतनी बढ़ जाएंगी मालूम ना था I"हंसी में छिपे खामोशियों को महसूस किया है I
मैखाने में बुजुर्गों को भी जवान होते देखा है I
हमने इन्शानो को जरुरत के बाद अनजान होते देखा है I
क्यों भूल जाते है इंसान अपनी अस्तित्व पैसा आते ही I
दुनियां ने बड़े - बड़े राज महराजा को फ़क़ीर होते देखा है I"चलते चलते कहीं रुका,
तो कुछ जानने वाले मिले
तो लगा कितनी छोटी सी दुनियां है
जब जानने वालों ने पहचाना नहीं
तो लगा की इस छोटी सी दुनियां में हम कितने छोटे है I"खुद पर गुरुर था तुम्हें की तुम मुहब्बत के बारे में सब जानते हो,
अच्छा चलो बताओ उसकी आंखों को ठीक से पहचानते हो I
क्या गलतफमी लिए जी रहे थे अब तक की तुम्हें मुहब्बत के हर रास्ते मालूम है,
अच्छा चलो बताओ उसके दिल तक पहुंचने का रास्ता जानते हो I
इश्क़ की सीढ़ी लगा कर जिस्म तक पहुंचने का तरीका सबको मालूम है यहाँ,
अच्छा चलो बताओ उसके रूह से गुफ्तगू करने का तरीका जानते हो IIतुझे पाने की तलब है मुझे
तुझे पसंद है जो गुलज़ार लिखे
इसलिए, तेरे लिए लिखना सीख लिया
तुझे मान, मेने अपना मीत लिया
तेरे संग ये जीवन बिताना है
या तो तुझे पाना है या खुद को तेरे लिए मिटाना है I"दर्द में हम उनके सामने रोये थे,
और वो तब भी अपने खयालों में खोए थे,
उनपे हम शायद अपना रंग न चढ़ा सके,
इसलिए हम गहरी नींद में गए और वो हमे न उठा सके,
उन्हें हमारी मौत की खबर भी किसी और ने दी,
गुस्सा हम उनसे थे और ऊपर वाले ने हमारी ही जान ले ली,
समय जब दोनों के पास था तो नाराजगी में बिता दी,
ये जिंदगी शायद मैने पछतावे में गुज़र ली।"तेरे जीवन में कभी अर्चन न बनूँगी,
तेरे सपनो के बिच न पडूँगी,
अगर कभी कोई परेशानी आयी हो तो कहना
तुझे छोड़ने से पीछे नहीं हटूँगी।"
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