सुना है आज समंदर को बड़ा गुमान आया है, उधर ही ले चलो कश्ती जहां तूफान आया है। बदल जाओ वक्त के साथ या फिर वक्त बदलना सीखो मजबूरियों को मत कोसो हर हाल में चलना सीखो अब जानेमन तू तो नहीं, शिकवा -ए-गम किससे कहें या चुप हें या रो पड़ें, किस्सा-ए-गम किससे कहें। लिखना था कि खुश हैं तेरे बगैर भी यहां हम, मगर कमबख्त... आंसू हैं कि कलम से पहले ही चल दिए। जो दिल के करीब थे ,वो जबसे दुश्मन हो गए जमाने में हुए चर्चे ,हम मशहूर हो गए अब काश मेरे दर्द की कोई दवा न हो बढ़ता ही जाये ये तो मुसल्सल शिफ़ा न हो बाग़ों में देखूं टूटे हुए बर्ग ओ बार ही मेरी नजर बहार की फिर आशना न हो सिर्फ एक सफ़ाह पलटकर उसने, बीती बातों की दुहाई दी है। फिर वहीं लौट के जाना होगा, यार ने कैसी रिहाई दी है। -गुलज़ार बैठे-बिठाए हाल-ए-दिल-ज़ार खुल गया मैं आज उसके सामने बैठकर बेकार खुल गया। -मुनव्वर राणा Created by Arun Rohilla
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